वली नसर : प्रस्तुत लेख निम्न पांच पुस्तकों की समीक्षा पर आधारित है : (1) मिया ब्लूम – ‘डाइंग टू किल […]
सशीज हेगड़े : प्रस्तुत लेख में आधुनिक भारत में बौद्धिक एवं वैचारिक इतिहास में ‘आधुनिकता’ को निर्धारित करने क प्रयास किया […]
थामस आर. बेट्स : एन्टोनियो ग्राम्शी 20वीं सदी के पूर्वाद्ध का एक महत्वपूर्ण मार्क्सवादी विचारक था. ग्राम्शी के देश इटली में […]
लिरॉय ए. कपूर : हाल के वर्षों में सहभागी सरकारों की संभाव्यता एवं महत्व पर लगातार बहसें हो रहीं हैं. हन्ना […]
कैरेन विन्ट्जेज़ : सिमॉन द् बुवॉ की कृति ‘दि सेकेण्ड सेक्स’ समकालीन नारीवाद के लिए एक ऐसा दार्शनिक आधार प्रदान करती […]
माइकल क्लार्क एवं रिक टिल्मैन : लोकतान्त्रिक सिद्धान्तों एवं व्यवहार का उद्भव एक लम्बी एवं श्रमसाध्य प्रक्रिया रही है. इसके बावजूद, […]
राबर्ट एमडूर : 1950 व 1960 के दशक में यह शंका व्यक्त की जाने लगी कि ‘राजनीतिक सिद्धान्त’ विषय ही खत्म […]
नाथन विडर : जब समाज विज्ञान व मानविकी में फूको के विचारों का महत्व घट रहा है, वहीं यह पुनर्विचार आवश्यक […]
डेविड डब्लू. मार्गन : बर्नस्टीन ‘संशोधनवाद के जनक’ के रूप में विख्यात है. उसे सन् 1890 के दशक के अन्त तक […]
(माइकल वाल्ज़र के विचारों को अभिव्यक्त करने वाला यह लेख स्वयं वाल्ज़र द्वारा लिखित है. यह लेख पूरी समुदायवादी परम्परा […]